ज़माने का चलन यकसाँ नहीं कुछ
कहीं कुछ है कहीं कुछ है कहीं कुछ
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Habib Jalib
Anwar Masood
Gulzar
Rahat Indori
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(416) Peoples Rate This
उट्ठा गया फ़लक पे गिरा ख़ाक में मिला
क्या नाज़ुकी बदन की उस रश्क-ए-गुल के कहिए
ने हाथ मिरा हाथ है ने जेब मिरी जेब
ये कब ख़याल में लाते हैं ताज-ए-शाही को
कहिए जो झूट तो हम होते हैं कह के रुस्वा
जाँ-बर हो किस तरह तप-ए-सौदा से 'मुसहफ़ी'
है तमन्ना-ए-सैर-ए-बाग़ किसे
जंगल में टेसू फूला और बाग़ में शगूफ़ा
नासेहा दूर हो चल मुझ से तू हिज्जे मत कर
सुन्नी ओ शीआ के क़ज़िए में है हैराँ मिरी अक़्ल
पेच दे दे लफ़्ज़ ओ मअनी को बनाते हैं कुलफ़्त
सुल्ह-ए-कुल में मिरी गुज़रे है मोहब्बत के बीच