यूँ है डलक बदन की उस पैरहन की तह में
सुर्ख़ी बदन की जैसे छलके बदन की तह में
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कब लग सके जफ़ा को उस की वफ़ा-ए-आलम
हैराँ हूँ इस क़दर कि शब-ए-वस्ल भी मुझे
हम 'मुसहफ़ी' ब-कुफ़्र तो मशहूर हो चुके
तसव्वुर तेरी सूरत का मुझे हर शब सताता है
जा जो इक दिन मिल गई पहलू में शोख़ी देखियो
जब तक ये मोहब्बत में बदनाम नहीं होता
बीमार दिल जुदा है इधर मैं उधर जुदा
आह हमराज़ कौन है अपना
इस इश्क़ ओ जुनूँ में न गरेबान का डर है
पेच दे दे लफ़्ज़ ओ मअनी को बनाते हैं कुलफ़्त
गर मज़ा चाहो तो कतरो दिल सरौते से मिरा
मुँह में जिस के तू शब-ए-वस्ल ज़बाँ देता है