ये ज़माना वो है जिस में हैं बुज़ुर्ग ओ ख़ुर्द जितने
उन्हें फ़र्ज़ हो गया है गिला-ए-हयात करना
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Gulzar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(320) Peoples Rate This
ये कब ख़याल में लाते हैं ताज-ए-शाही को
उस ने कर वसमा जो फ़ुंदुक़ पे जमाई मेहंदी
उस के कूचे की तरफ़ था शब जो दंगा आग का
उम्र सय्याद की गुज़री इसी जासूसी में
क़िस्सा-ए-मजनूँ पसंद-ए-ख़ातिर जानाना है
मज्लिस में उस की अब तो दरबार सा लगे है
है ये फ़लक-ए-सिफ़्ला वो फीका सा फ़रंगी
शहर में मुझ से भड़कता था तसव्वुर तेरा
जब से मअ'नी-बंदी का चर्चा हुआ ऐ 'मुसहफ़ी'
फ़िक्र-ए-सुख़न तलाश-ए-मआश ओ ख़याल-ए-यार
मैं अजब ये रस्म देखी मुझे रोज़-ए-ईद-ए-क़ुर्बां
कौन कहता है कि फिर ख़ाक से उठते हैं शहीद