ये रोज़ ढूँढ लाए है इक ख़ूब-रू नया
शाकी हैं अपने ही दिल-ए-आफ़त-तलब से हम
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(375) Peoples Rate This
अब मुझ को गले लगाओ साहिब
आप हर दम जो ये कहते हैं कि तू क्यूँ है खड़ा
ऐसी आज़ुर्दगी क्या थी हमें इस कूचे से
जितना कि ये दुनिया में हमें ख़्वार रखे है
सज्दा-गाह अपनी किए राह के रोड़े पत्थर
हैराँ हूँ इस क़दर कि शब-ए-वस्ल भी मुझे
ग़बग़ब से बचा दिल तो ज़ख़ंदान में डूबा
रहमत तिरी ऐ नाक़ा-कश-ए-महमिल-ए-हाजी
पस-ए-क़ाफ़िला जो ग़ुबार था कोई उस में नाक़ा-सवार था
ज़ुल्फ़ों का बिखरना इक तो बला, आरिज़ की झलक फिर वैसी ही
शब मगर रह गई थोड़ी जो नज़र आता है
दिल्ली में अपना था जो कुछ अस्बाब रह गया