यारान-ए-सुख़न-गो की है वो कंपनी अपनी
नित जिस की सलामी है फ़रासीस की टोपी
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अक़्ल गई है सब की खोई क्या ये ख़ल्क़ दिवानी है
अज़-बस भला लगे है तू मेरे यार मुझ को
गो कि तू 'मीर' से हुआ बेहतर
न प्यारे ऊपर ऊपर माल हर सुब्ह-ओ-मसा चक्खो
आह हमराज़ कौन है अपना
ऐसी आज़ुर्दगी क्या थी हमें इस कूचे से
दैर ओ हरम ब-चशम-ए-हक़ीक़त नहीं जुदा
जो शम्अ है काबे की वही नूर का शोअ'ला
वो दर तलक आवे न कभी बात की ठहरे
दिल डूब गया टूट गया सब्र का लंगर
है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से
इस रंग से अपने घर न जाना