याँ तक किया मैं गिर्या कि ख़ूबाँ के इश्क़ में
साथ आबरू के अपनी गई आबरू-ए-चश्म
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(334) Peoples Rate This
नासेहा दूर हो चल मुझ से तू हिज्जे मत कर
दिल के आईने की हम लेते हैं तब है है ख़बर
माइल-ए-गिर्या मैं याँ तक हूँ कि आज़ा पे मिरे
मैं क्यूँकर न रख्खूँ अज़ीज़ अपने दिल को
कटता हूँ मैं भी वो कि मिरी जिंस-ए-दिल को देख
फ़लक की ख़बर कब है ना-शाइरों को
गर रहूँ शहर में हो दूद के बाइस ख़फ़क़ाँ
इतनी बे-शर्म-ओ-हया हो गई क्यूँ दुख़्तर-ए-रज़
काम अज़-बस-कि ज़माने का हुआ है बर-अक्स
रुख़ ज़ुल्फ़ में बे-नक़ाब देखा
शब मगर रह गई थोड़ी जो नज़र आता है
उस की पड़ी न आँख ख़त-ओ-ख़ाल पर तिरे