वो जो आशिक़ हैं अपने हाथों से
फेंक देते हैं काट कर सर को
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जी में है इतने बोसे लीजे कि आज
जितना कि ये दुनिया में हमें ख़्वार रखे है
सीने के ज़ोर से भी मू भर नहीं उकसती
बात को मेरी अलग हो के न शरमाओ सुनो
जब कि बे-पर्दा तू हुआ होगा
शब में देखी हैं पड़ी पाँव में ज़ंजीरें दो
नर्मी-ए-बालिश-ए-पर हम को नहीं भाती है
ये कब ख़याल में लाते हैं ताज-ए-शाही को
मुश्ताक़ ही दिल बरसों उस ग़ुंचा-दहन का था
होंटों तक आते आते हुई वो भी सर्द आह
कल तो खेले था वो गिली डंडा
फ़िक्र-ए-सुख़न तलाश-ए-मआश ओ ख़याल-ए-यार