वो आप कर रही है मुदाम उस की जुस्तुजू
शोले को अपना गो नहीं देती सुराग़ शम्अ
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चीन-ए-पेशानी न दिखलाओ मैं हूँ नाज़ुक-मिज़ाज
मेरी सी तू ने गुल से न गर ऐ सबा कही
गर और भी मिरी तुर्बत पे यार ठहरेगा
कोई घर बैठे क्या जाने अज़िय्यत राह चलने की
आलम को इक हलाक किया उस ने 'मुसहफ़ी'
हम भी हैं तिरे हुस्न के हैरान इधर देख
आता नहीं समझ में कि कहते हैं किस को इश्क़
ख़ूब-रूयों की मोहब्बत से करें क्यूँ तौबा
लग रही है ख़ाना-ए-दिल को हमारे आग हाए
जो शम्अ है काबे की वही नूर का शोअ'ला
इस नौ-बहार में तो तरह गुल के ऐ नसीम
तूर पर अपने किसी दिन भी ख़ुर-ओ-ख़्वाब है याँ