वारफ़्ता हूँ ऐसा में कि कूचे में बुताँ के
ठहराऊँ जो टुक दिल को तो फिर पाँव उखड़ जाए
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जाते जाते राह में उस ने मुँह से उठाया जूँही पर्दा
साबित तू रह जफ़ा पे मैं क़ाएम वफ़ा पे हूँ
तीन हिस्से हैं ज़मीं के ग़र्क़-ए-दरिया-ए-मुहीत
अज़-बस भला लगे है तू मेरे यार मुझ को
इस नौ-बहार में तो तरह गुल के ऐ नसीम
अब जिस दिल-ए-ख़्वाबीदा की खुलती नहीं आँखें
कह दो मजनूँ से करे अपनी सवारी तय्यार
था जो शेर-ए-रास्त सर्व-ए-बोसतान-ए-रेख़्ता
सामने उस के लगूँ रोने तो झुँझला के कहे
मुहताज-ए-ज़ेब-ए-आरियती कब है ज़ात-ए-बह्त
कह गया कुछ तो ज़ेर-ए-लब कोई
ने हाथ मिरा हाथ है ने जेब मिरी जेब