वादों ही पे हर रोज़ मिरी जान न टालो
है ईद का दिन अब तो गले हम को लगा लो
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(390) Peoples Rate This
गर देखिए तो आईना-ए-क़द-नुमा की शक्ल
क़ासिद को उस ने जाते ही रुख़्सत किया था लेक
मैं तुझ को याद करता हूँ इलाही
अगरचे दिल तो हमें तुम से कुछ अज़ीज़ नहीं
एक नाले पे है मआश अपनी
यार हैं चीं-बर-जबीं सब मेहरबाँ कोई नहीं
बस-कि हों मिल्लत-ओ-मज़हब से जहाँ के आज़ाद
दैर ओ हरम ब-चशम-ए-हक़ीक़त नहीं जुदा
हैराँ हूँ इस क़दर कि शब-ए-वस्ल भी मुझे
देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर
गर समझते वो कभी मअनी-ए-मत्न-ए-क़ुरआँ
क्या जाने क्या करेगा ये दीदार देखना