उस के कूचे में पुकारेगा अगर मुझ को रक़ीब
मैं भी अय्यार हूँ आवाज़ बदल जाऊँगा
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सोते हैं हम ज़मीं पर क्या ख़ाक ज़िंदगी है
राँझा यही कहता था इधर देखियो मजनूँ
मुसव्विरों ने क़लम रख दिए हैं हाथों से
ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ
'मुसहफ़ी' हर घड़ी जाया न करो तुम साहिब
हरगिज़ न मुझ से साफ़ हुआ यार या नसीब
ऐ 'मुसहफ़ी' तू और कहाँ शेर का दावा
कटता हूँ मैं भी वो कि मिरी जिंस-ए-दिल को देख
जान जानी है मिरी ऐ बुत-ए-कम-सिन तुझ पर
बात को मेरी अलग हो के न शरमाओ सुनो
न प्यारे ऊपर ऊपर माल हर सुब्ह-ओ-मसा चक्खो
शब मगर रह गई थोड़ी जो नज़र आता है