उन को भी तिरे इश्क़ ने बे-पर्दा फिराया
जो पर्दा-नशीं औरतें रुस्वा न हुईं थीं
Wasi Shah
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(281) Peoples Rate This
मुसव्विरों ने क़लम रख दिए हैं हाथों से
ऐ 'मुसहफ़ी' तू और कहाँ शेर का दावा
हाथ दोनों कफ़-ए-अफ़्सोस की सूरत लिक्खे
धोया गया तमाम हमारा ग़ुबार-ए-दिल
क़ासिद को उस ने जाते ही रुख़्सत किया था लेक
याँ तक किया मैं गिर्या कि ख़ूबाँ के इश्क़ में
गर ज़माने की अदावत है यही मुझ से तो मैं
उस गली में जो हम को लाए क़दम
जी जिस को चाहता था उसी से मिला दिया
इतना जो हम से रहते हो बेगाना मेरी जान
मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के
सोच दिन रात यही है तिरे दीवाने की