उम्र सय्याद की गुज़री इसी जासूसी में
गुल को नामा न करे मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार-ए-रवाँ
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कम है कुछ कुंदन से क्या चेहरे का उस के रंग-ए-ज़र्द
ईद तू आ के मिरे जी को जलावे अफ़्सोस
कब शब-ए-वस्ल वो आया कि मिरे और उस के
दौलत-ए-फ़क़्र-ओ-फ़ना से हैं तवंगर हम लोग
इस हवा में कर रहे हैं हम तिरा ही इंतिज़ार
अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह
शेर दौलत है कहाँ की दौलत
उस के कूचे में पुकारेगा अगर मुझ को रक़ीब
मंसूर ने न ज़ुल्फ़ के कूचे की राह ली
रो के इन आँखों ने दरिया कर दिया
कभी तो बैठूँ हूँ जा और कभी उठ आता हूँ
है रोज़-ए-पंज-शम्बा तू फ़ातिहा दिला दे