तू मेरे सामने बैठा है आह तिस पर भी
फिरी हुई है तिरी एहतिराज़ की गर्दन
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Anwar Masood
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(281) Peoples Rate This
जब से मअ'नी-बंदी का चर्चा हुआ ऐ 'मुसहफ़ी'
उस गुल का पता गर नहीं देते हो तो यारो
पढ़ न ऐ हम-नशीं विसाल का शेर
कपड़े बदल के आए थे आग मुझे लगा गए
इस मर्ग को कब नहीं मैं समझा
ने बुत है न सज्दा है ने बादा न मस्ती है
यूँ चलते हैं लोग राह ज़ालिम
ध्यान बाँधूँ हूँ जो मैं उस की हम-आग़ोशी का
या-रब आबाद होवें घर सब के
कर के ज़ख़्मी तू मुझे सौंप गया ग़ैरों को
आता है यही जी में फ़रियाद करूँ रोऊँ
कुश्ता-ए-रंग-ए-हिना हूँ मैं ओजब इस का क्या