तू खुले बालों मिरे सामने आया मत कर
वर्ना सर पीट अभी घर से निकल जाऊँगा
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ज़ख़्म-ए-शमशीर-ए-निगह हैफ़ कि अच्छा न हुआ
जाते जाते राह में उस ने मुँह से उठाया जूँही पर्दा
गह तीर मारता है गह संग फेंकता है
ऐ काश कोई शम्अ के ले जा के मुझे पास
या-रब आबाद होवें घर सब के
पीछा किसी तरह ये मिरा छोड़ता नहीं
आधी रात आए तिरे पास ये किस का है जिगर
शिफ़ा नसीब मिरे क्यूँ के हो कि ऐ यारो
खड़ा न सुन के सदा मेरी एक यार रहा
इस क़दर भी तो मिरी जान न तरसाया कर
बस-कि हों मिल्लत-ओ-मज़हब से जहाँ के आज़ाद
पर्दा उठा के मेहर को रुख़ की झलक दिखा कि यूँ