तू जिस के ख़्वाब में आया हो वक़्त-ए-सुब्ह सनम
नमाज़-ए-सुब्ह को किस तरह वो क़ज़ा न करे
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यूँ चलते हैं लोग राह ज़ालिम
सौ बार गया मैं उस के दर पर
कपड़े बदल के आए थे आग मुझे लगा गए
सोहबत है तिरे ख़याल के साथ
बे-मुरव्वत तुझे आज़ुर्दा करेंगे हम लोग
'मुसहफ़ी' हर घड़ी जाया न करो तुम साहिब
आतिश-ए-ग़म में बस कि जलते हैं
ज़ख़्म है और नमक फ़िशानी है
क्या जानिए चमन में क्या ताज़ा गुल खिला हो
घर में बाशिंदे तो इक नाज़ में मर जाते हैं
तरफ़ा आलम है हमारा भी कि हर दम उस से
ओ मियाँ बाँके है कहाँ की चाल