तू हम-दमों से जुदा रह कि टूट जाता है
हबाब के जो क़रीं दूसरा हबाब आया
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Anwar Masood
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(316) Peoples Rate This
या-रब आबाद होवें घर सब के
हाथ दोनों कफ़-ए-अफ़्सोस की सूरत लिक्खे
मौज-ए-निकहत की सबा देख सवारी तय्यार
खेल जाते हैं जान पर आशिक़
आख़िर तो अर्श पर हैं अर्वाह-ए-शाइराँ भी
कब ख़ूँ में भरा दामन-ए-क़ातिल नहीं मालूम
सरक ऐ मौज सलामत तो रह-ए-साहिल ले
पेच दे दे लफ़्ज़ ओ मअनी को बनाते हैं कुलफ़्त
दिल-ए-मायूस को पहने हुए आती हैं नज़र
आज ख़ूँ हो के टपक पड़ने के नज़दीक है दिल
खुलता है क़ुफ़्ल-ए-ऐश मिरा इस से 'मुसहफ़ी'
रहमत तिरी ऐ नाक़ा-कश-ए-महमिल-ए-हाजी