तू गोश-ए-दिल से सुने उस को गर बत-ए-बे-मेहर
फ़साना तुर्फ़ा है और माजरा है ज़ोर मिरा
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जो परी भी रू-ब-रू हो तो परी को मैं न देखूँ
मैं ने कहा था उस से अहवाल-ए-गिरिया अपना
तरसा न मुझ को खींच के तलवार मार डाल
मज़हब की मेरे यार अगर जुस्तुजू करें
आशिक़ कहें हैं जिन को वो बे-नंग लोग हैं
बे-लाग हैं हम हम को रुकावट नहीं आती
तुम भी आओगे मिरे घर जो सनम क्या होगा
मैं सवा शेर के कुछ और समझता ही नहीं
कपड़े बदल के आए थे आग मुझे लगा गए
कह दो मजनूँ से करे अपनी सवारी तय्यार
कहीं देखा है इस हैअत का माशूक़
ज़ालिम ख़ुदा के वास्ते बैठा तो रह ज़रा