तीन हिस्से हैं ज़मीं के ग़र्क़-ए-दरिया-ए-मुहीत
रुबअ मस्कों में कुछ आबादी है कुछ वीराना है
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Anwar Masood
Wasi Shah
Habib Jalib
Gulzar
Allama Iqbal
Javed Akhtar
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साअत-ए-ईसवियाँ है कि मिरा दिल जिस में
यार होता है मिरा लाला-अज़ार एक न एक
वही रातें आएँ वही ज़ारियाँ
ज़ालिम ख़ुदा के वास्ते बैठा तो रह ज़रा
दिल के नगर में चार तरफ़ जब ग़म की दुहाई बैठ गई
मैं ने कहा था उस से अहवाल-ए-गिरिया अपना
ऐश-ए-जहाँ बग़ल में तुम्हारी सब आ रहा
जल्वा-गर उस का सरापा है बदन आइने में
मुँह में जिस के तू शब-ए-वस्ल ज़बाँ देता है
अव्वल तो ये धज और ये रफ़्तार ग़ज़ब है
चश्म ने की गौहर-अफ़्शानी सरीह
बिन ख़ूँ से लिक्खे कोई होता है नामा रंगीं