तदबीर मआश इस जा है शर्त-ए-ख़िरद-मंदी
इंसान नहीं गिनते हम 'मुसहफ़ी' काएर को
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Anwar Masood
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(360) Peoples Rate This
दूर से मुझ को न मुँह अपना दिखाओ जाओ
पैरहन लूटे मज़े तेरी हम-आग़ोशी के
सादिक़ से बस इक आन में हो जावे तू काज़िब
ग़ैर के घर तू न रह रात को मेहमान कहीं
ऐ ज़ाहिदो बातिल से क़सम खाओ जो पहले
तीखे तो हो प सच कहो उस वक़्त क्या करो
तब जानूँ मैं कि दीन-ए-मोहम्मद के हैं हरीफ़
चाहता हूँ उस को मैं वो चाहता मुझ को नहीं
तुझ को ऐ सय्याद काविश ही अगर मंज़ूर है
नख़्ल-ए-हिरमाँ को न थी बालीदगी
इस इश्क़ ओ जुनूँ में न गरेबान का डर है
आदमी को ग़फ़लत-ए-दुनिया नहीं देती नजात