ताब-ओ-ताक़त रहे क्या ख़ाक कि आज़ा के तईं
हाकिम-ए-ज़ोफ़ से फ़रमान-ए-तग़ईरी आया
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कम है कुछ कुंदन से क्या चेहरे का उस के रंग-ए-ज़र्द
ना-अहल हम हैं वर्ना सरापा में यार के
अब शीशा-ए-साअत की तरह ख़ुश्की के बाइस
नर्मी-ए-बालिश-ए-पर हम को नहीं भाती है
क्या बैठना क्या उठना क्या बोलना क्या हँसना
जब कि बे-पर्दा तू हुआ होगा
कर्बला है ये गली क्या जो नहीं मिलता याँ
कहीं मग़्ज़ उस के मैं सुब्ह-दम तिरी बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-रसा गई
है तमन्ना-ए-सैर-ए-बाग़ किसे
मौज-ए-निकहत की सबा देख सवारी तय्यार
मसलख़-ए-इश्क़ में खिंचती है ख़ुश-इक़बाल की खाल
कुश्ता-ए-रंग-ए-हिना हूँ मैं ओजब इस का क्या