सीने पे मेरे हर दम रखते हैं हाथ ख़ूबाँ
दिल ले चुके फिर इस में ये क्या क्या टटोलते हैं
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अब मिरी बात जो माने तो न ले इश्क़ का नाम
दरिया-ए-आशिक़ी में जो थे घाट घाट साँप
इस हवा में कर रहे हैं हम तिरा ही इंतिज़ार
यार होता है मिरा लाला-अज़ार एक न एक
अव्वल तो थोड़ी थोड़ी चाहत थी दरमियाँ में
किस ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम के आई है मुक़ाबिल
दिल ख़ुश न हुआ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से निकल कर
शब शौक़ ले गया था हमें उस के घर तलक
सरक ऐ मौज सलामत तो रह-ए-साहिल ले
'मुसहफ़ी' फ़ारसी को ताक़ पे रख
छुरियाँ चलीं शब दिल ओ जिगर पर
तुझ को ऐ सय्याद काविश ही अगर मंज़ूर है