शैख़ काबे को तू जा जाऊँ मैं बुत-ख़ाने को
कि तिरी राह है वो और मिरी राह है ये
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Parveen Shakir
Anwar Masood
Habib Jalib
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(267) Peoples Rate This
खेल जाते हैं जान पर आशिक़
कपड़े बदल के आए थे आग मुझे लगा गए
मुझ को पामाल कर गया है वही
शब शौक़ ले गया था हमें उस के घर तलक
खुलता है क़ुफ़्ल-ए-ऐश मिरा इस से 'मुसहफ़ी'
ना-तवानी के सबब याँ किस से उट्ठा जाए है
नित जिन आँखों में रहे था तेरी सूरत का ख़याल
ज़माने का चलन यकसाँ नहीं कुछ
था जो शेर-ए-रास्त सर्व-ए-बोसतान-ए-रेख़्ता
जितना कि ये दुनिया में हमें ख़्वार रखे है
मैं तो जाता हूँ तरफ़ काबे के पर काफ़िर ये पाँव
हर चंद अमरदों में है इक राह का मज़ा