शब में देखी हैं पड़ी पाँव में ज़ंजीरें दो
यारो इस ख़्वाब की तुम ही मुझे ताबीरें दो
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महरूम है नामा-दार-ए-दुनिया
पटरे धरे हैं सर पर दरिया के पाट वाले
दिल चुराना ये काम है तेरा
अव्वल-ए-उम्र में देखा उसे जिस ने ये कहा
दस्त-ए-शिकस्ता अपना न पहुँचा कभी दरेग़
मैं तुझ को याद करता हूँ इलाही
पर्दा उठा के मेहर को रुख़ की झलक दिखा कि यूँ
यक क़तरा ख़ूँ बग़ल में है दिल मिरी सो इस को
तन तो कहाँ है शोला-ए-फ़ानूस की तरह
नख़्ल-ए-हिरमाँ को न थी बालीदगी
मुसव्विरों ने क़लम रख दिए हैं हाथों से
यार होता है मिरा लाला-अज़ार एक न एक