शब मगर रह गई थोड़ी जो नज़र आता है
हर सितारे में चराग़-ए-सहरी का आलम
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इस क़दर भी तो मिरी जान न तरसाया कर
सोच दिन रात यही है तिरे दीवाने की
इश्क़-ए-फ़ुज़ूँ में मेरे न हो दोस्तो कमी
जितना कि ये दुनिया में हमें ख़्वार रखे है
मैं ने कहा था उस से अहवाल-ए-गिरिया अपना
मैं ने किस चश्म के अफ़्साने को आग़ाज़ किया
उन को भी तिरे इश्क़ ने बे-पर्दा फिराया
तेरी ही ज़ात से तो है वाबस्ता ये तिलिस्म
सुख़न में कामरानी कर रहा हूँ
तू मेरे सामने बैठा है आह तिस पर भी
जब तक ये मोहब्बत में बदनाम नहीं होता
शोख़ी-ए-हुस्न के नज़्ज़ारे की ताक़त है कहाँ