सौ बार गया मैं उस के दर पर
पूछा न किसी ने ये भी था कौन
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(317) Peoples Rate This
औरों की तरफ़ तू देखता है
रही हमेशा तरक़्क़ी मिरी असीरी को
हर-चंद बहार ओ बाग़ है ये
क्या रेख़्ता कम है 'मुसहफ़ी' का
उस रश्क-ए-मह की याद दिलाती है चाँदनी
सीना है पुर्ज़े पुर्ज़े जा-ए-रफ़ू नहीं याँ
ज़ख़्म है और नमक फ़िशानी है
नित जिन आँखों में रहे था तेरी सूरत का ख़याल
तुझ से गर वो दिला नहीं मिलता
दिल-ए-मायूस को पहने हुए आती हैं नज़र
दिल को ये इज़्तिरार कैसा है
ज़ालिम ख़ुदा के वास्ते बैठा तो रह ज़रा