सामने उस के लगूँ रोने तो झुँझला के कहे
याँ से ले जाइए ये दीदा-ए-तर और कहीं
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Gulzar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(325) Peoples Rate This
मुवाफ़क़त हो जो ताले की उस की मज्लिस में
ख़्वाब का दरवाज़ा कुइ मसदूद कर देता है रोज़
जाड़ों में है ये रंग कि अपने लिहाफ़ के
सब उठ्ठे बज़्म से और अपने अपने घर को चले
हूँ मुशव्वश मुझे इस दम न लगा हाथ सबा
खावेंगे टाँके ज़ख़्म-ए-सर-ओ-रू पर ऐ तबीब
है तिरी कू में ख़बर हश्र के हंगामे की
आलम से हमारा कुछ मज़हब ही निराला है
इस में आलम की सब आबादी ओ वीराना है
खड़ा न सुन के सदा मेरी एक यार रहा
ले लिया प्यार से अक्स अपने का झुक कर बोसा
दरिया-ए-आशिक़ी में जो थे घाट घाट साँप