सैल-ए-गिर्या का मैं ममनूँ हूँ कि जिस की दौलत
बह गई दिल से मिरे जूँ ख़स-ओ-ख़ाशाक हवस
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इस रंग से अपने घर न जाना
बात को मेरी अलग हो के न शरमाओ सुनो
क्यूँ नीची नज़रें कर लीं मियाँ ये तो तू बता
दाग़-ए-दिल शब को जो बनता है चराग़-ए-दहलीज़
महरूम है नामा-दार-ए-दुनिया
अश्क से मेरे बचे हम-साया क्यूँ-कर घर समेत
शहर में मुझ से भड़कता था तसव्वुर तेरा
दिल के आईने की हम लेते हैं तब है है ख़बर
तसव्वुर तेरी सूरत का मुझे हर शब सताता है
क्या काम किया तुम ने थी ये भी अदा कोई
माशूक़ा-ए-गुल नक़ाब में है
गो भूल गया हूँ मैं तुझे तो भी तिरा रंग