राँझा यही कहता था इधर देखियो मजनूँ
लैला की मलामत है बहुत हीर में मेरी
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तदबीर मआश इस जा है शर्त-ए-ख़िरद-मंदी
आधी रात आए तिरे पास ये किस का है जिगर
ऐ फ़लक किस ने कहा था तुझे ये तो बतला
आसाँ नहीं है तन्हा दर उस का बाज़ करना
जब से मअ'नी-बंदी का चर्चा हुआ ऐ 'मुसहफ़ी'
तू खुले बालों मिरे सामने आया मत कर
बैठा था आ के क़ैस तो लैला के दर पे लेक
तू देखे तो इक नज़र बहुत है
अक़्ल गई है सब की खोई क्या ये ख़ल्क़ दिवानी है
गरचे तुम ताज़ा गुल-ए-गुलशन-ए-रानाई हो
जाने दे टुक चमन में मुझे ऐ सबा सरक
कोई घर बैठे क्या जाने अज़िय्यत राह चलने की