रंग-ए-बदन से उस के ये होता जल्वा-गर
एक तह-गुलाबी दी हुई है पैरहन के बीच
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Habib Jalib
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(288) Peoples Rate This
कहिए जो झूट तो हम होते हैं कह के रुस्वा
या थी हवस-ए-विसाल दिन रात
बस-कि तेज़ाब से कुछ कम भी न था वो दम-ए-क़त्ल
हैराँ हूँ इस क़दर कि शब-ए-वस्ल भी मुझे
हो चुका नाज़ मुँह दिखाइए बस
उस के कूचे की तरफ़ था शब जो दंगा आग का
घर में बाशिंदे तो इक नाज़ में मर जाते हैं
फिर आई ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल की लहर पेश-ए-नज़र
पेच दे दे लफ़्ज़ ओ मअनी को बनाते हैं कुलफ़्त
आदमी से आदमी की जब न हाजत हो रवा
रखता है क़दम नाज़ से जिस दम तू ज़मीं पर
है मौसम-ए-बहार का आग़ाज़ क़हर है