रखता है क़दम नाज़ से जिस दम तू ज़मीं पर
कहते हैं फ़रिश्ते तुझे जय अर्श-ए-बरीं पर
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ने बुत है न सज्दा है ने बादा न मस्ती है
क्या बैठना क्या उठना क्या बोलना क्या हँसना
तू छोड़ अब तो असीर-ए-क़फ़स को ऐ सय्याद
अदम वालों की सोहबत से भी नफ़रत हो गई अब तो
बातों में लगाए ही मुझे रखता है ज़ालिम
मैं तेरे डर से न देखा उधर बहुत शब-ए-वस्ल
'मीर' क्या चीज़ है 'सौदा' क्या है
अश्क से मेरे बचे हम-साया क्यूँ-कर घर समेत
काश सोता ही रहूँ मैं कि नहीं चाहता दिल
पैवस्ता गर्द-ए-दश्त रही गर तह-ए-दरूँ
दिलबर की तमन्ना-ए-बर-ओ-दोश में मर जाए
मेरे और यार के पर्दा तो नहीं कुछ लेकिन