रात दिन तू है मिरी आग़ोश में
मैं तिरा साहिल मिरा दरिया है तू
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तो माइल-ए-उश्शाक़-कुशी है तो यहाँ भी
रात पर्दे से ज़रा मुँह जो किसू का निकला
फ़लक की ख़बर कब है ना-शाइरों को
क्या दख़्ल किसी से मरज़-ए-इश्क़ शिफ़ा हो
हरगिज़ किया न बाद-ए-ख़िज़ाँ का भी इंतिज़ार
चाक करता है अभी जामा-ए-उर्यानी को
मुझ को ये सोच है जीते हैं वे क्यूँ-कर या-रब
ये दिल वो शीशा है झमके है वो परी जिस में
पर्दा-ए-गोश-ए-असीराँ न हुई इक शब-ए-गर्म
ने ज़ख़्म-ए-ख़ूँ-चकाँ हूँ न हल्क़-ए-बुरीदा हूँ
अगरचे दिल तो हमें तुम से कुछ अज़ीज़ नहीं
कहीं मग़्ज़ उस के मैं सुब्ह-दम तिरी बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-रसा गई