रात दिन गर्दिश में है पर हो नहीं सकता हनूज़
दौर-ए-दामान-ए-फ़लक इस दौर-ए-दामाँ का हरीफ़
Gulzar
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बद-गुमानी ने मुझे क्या क्या सताया क्या कहूँ
आह हमराज़ कौन है अपना
उस के मक़्तल में मिरा ख़ून बटा दस्त-ब-दस्त
जो तू ऐ 'मुसहफ़ी' रातों को इस शिद्दत से रोवेगा
क़िस्सा-ए-मजनूँ पसंद-ए-ख़ातिर जानाना है
किधर जाइए और कहाँ बैठिए
चाक करता है अभी जामा-ए-उर्यानी को
मुँह छुपाओ न तुम नक़ाब में जान
गर ख़ाक से हमारी पुतला कोई बनावे
ज़ेर-ए-नक़ाब आब-गूँ हाए-रे उन की जालियाँ
तुझ को ऐ सय्याद काविश ही अगर मंज़ूर है
ज़ि-बस हम को निहायत शौक़ है अमरद-परस्ती का