क़ासिद जो गया मेरा ले नामा तो ज़ालिम ने
नामे के किए पुर्ज़े क़ासिद को बिठा रक्खा
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Gulzar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Anwar Masood
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(332) Peoples Rate This
जल्वा-गर उस का सरापा है बदन आइने में
उस रश्क-ए-मह की याद दिलाती है चाँदनी
ज़ेर-ए-नक़ाब आब-गूँ हाए-रे उन की जालियाँ
ऐश-ए-जहाँ बग़ल में तुम्हारी सब आ रहा
ज़ुल्फ़ अगर दिल को फँसा रखती है
फिर ये कैसा उधेड़-बुन सा लगा
दूकान-ए-मय-फ़रोश पे गर आए मोहतसिब
ख़ुदा की क़सम फिर तो क्या ख़ैर होवे
मौज-ए-निकहत की सबा देख सवारी तय्यार
'मुसहफ़ी' हम तो ये समझे थे कि होगा कोई ज़ख़्म
गुलशन में हवा से जो खुला यार का सीना
शब हम को जो उस की धुन रही है