क़लक़-ए-दिल से हैं जैसे मिरे रुख़्सारे ज़र्द
फूल गेंदे के भी हों ऐसे न बेचारे ज़र्द
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(273) Peoples Rate This
जाँ-बर हो किस तरह तप-ए-सौदा से 'मुसहफ़ी'
तदबीर मआश इस जा है शर्त-ए-ख़िरद-मंदी
गो अब हज़ार शक्ल से जल्वा करे कोई
दम ग़नीमत है कि वक़्त-ए-ख़ुश-दिली मिलता नहीं
झुर्रियाँ क्यूँ न पड़ें उम्र-ए-फ़ुज़ूँ में मुँह पर
बस बहुत ज़ब्त-ए-ग़म-ए-इश्क़ किया
लब बंद ही रक्खो, नहीं फिर और करेगा
नख़्ल-ए-हिरमाँ को न थी बालीदगी
बातों ने उस की हम को ख़ामोश कर दिया है
ग़बग़ब से बचा दिल तो ज़ख़ंदान में डूबा
जी में आती है करूँ उन को मैं इक दिन सीधा
नहीं करती असर फ़रियाद मेरी