क़ैस मिले तो उस से पूछूँ क्या तिरे जी में आई दिवाने
शहर को तू ने किस लिए छोड़ा क्यूँकि ख़ुश आया तुझ को सहरा
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ऐ 'मुसहफ़ी' उस्ताद-ए-फ़न-ए-रेख़्ता-गोई
रात दिन गर्दिश में है पर हो नहीं सकता हनूज़
इस नाज़नीं की बातें क्या प्यारी प्यारियाँ हैं
पढ़ न ऐ हम-नशीं विसाल का शेर
चाहता हूँ उस को मैं वो चाहता मुझ को नहीं
हम से पाई नहीं जाती कमर उस की ऐ ज़ुल्फ़
इस गोशा-ए-उज़्लत में तन्हाई है और मैं हूँ
मंसूर ने न ज़ुल्फ़ के कूचे की राह ली
चले ले के सर पर गुनाहों की गठरी
आधी रात आए तिरे पास ये किस का है जिगर
ईद अब के भी गई यूँही किसी ने न कहा
अभी आग़ाज़-ए-मोहब्बत है कुछ इस का अंजाम