पीछा किसी तरह ये मिरा छोड़ता नहीं
हाथों से इश्क़ के कोई जावे कहाँ निकल
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(320) Peoples Rate This
वाँ रसाई ही नहीं मजनून-ए-सहरा-गर्द की
अपनी तो इस चमन में नित उम्र यूँही गुज़री
हम 'मुसहफ़ी' ब-कुफ़्र तो मशहूर हो चुके
मैं ज़ुल्फ़ मुँह में ली तो कहा मार खाएगा
बाग़बाँ काटियो मत मौसम-ए-गुल में उस को
जाँ-बर हो किस तरह तप-ए-सौदा से 'मुसहफ़ी'
दाग़-ए-पेशानी-ए-ज़ाहिद न गया जीते-जी
तू मेरे सामने बैठा है आह तिस पर भी
जूँ ही ज़ंजीर के पास आए पाँव
बैठे बैठे जो हम ऐ यार हँसे और रोए
तेरी इस्मत में हमें शक नहीं ऐ माया-ए-नाज़
ये जो अपने हाथ में दामन सँभाले जाते हैं