ने हाथ मिरा हाथ है ने जेब मिरी जेब
क्या दस्त ओ गरेबाँ को कहूँ दस्त ओ गरेबाँ
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यूँ चलते हैं लोग राह ज़ालिम
खावेंगे टाँके ज़ख़्म-ए-सर-ओ-रू पर ऐ तबीब
सादगी देख कि बोसे की तमअ रखता हूँ
जो मिला उस ने बेवफ़ाई की
कर्बला है ये गली क्या जो नहीं मिलता याँ
उस के दहान-ए-तंग में जा-ए-सुख़न नहीं
ज़ख़्म-ए-शमशीर-ए-निगह हैफ़ कि अच्छा न हुआ
आता है यही जी में फ़रियाद करूँ रोऊँ
आसाँ नहीं दरिया-ए-मोहब्बत से गुज़रना
कम है कुछ कुंदन से क्या चेहरे का उस के रंग-ए-ज़र्द
कुछ टूटे फटे सीने को साथ अपने सफ़र में
गर अब्र घिरा हुआ खड़ा है