नसीम मुज़्तरिब-उल-हाल जाए थे पीछे
ये किस परी की गई बाग़ से सवारी रात
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चाहूँगा मैं तुम को जो मुझे चाहोगे तुम भी
मंज़िल-ए-मर्ग के आ पहुँचे हैं नज़दीक अब तो
फ़िक्र-ए-सुख़न तलाश-ए-मआश ओ ख़याल-ए-यार
काश सोता ही रहूँ मैं कि नहीं चाहता दिल
किश्वर-ए-दिल अब मकान-ए-दर्द-ओ-दाग़-ओ-यास है
आसिफ़ुद्दौला-ए-मरहूम वो था शुस्ता-मिज़ाज
ज़ालिम ख़ुदा के वास्ते बैठा तो रह ज़रा
तुम्हारे सामने क्या 'मुसहफ़ी' पढ़े अशआर
बस-कि तेज़ाब से कुछ कम भी न था वो दम-ए-क़त्ल
ज़ीं-साज़ी अगर आती मुझे मैं तो मिरी जाँ
क्या रेख़्ता कम है 'मुसहफ़ी' का
ऐ 'मुसहफ़ी' तू और कहाँ शेर का दावा