नक़्शा है उन की चश्म में लैला की चश्म का
मजनूँ हो शाद क्यूँ न ग़ज़ालों को देख कर
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(320) Peoples Rate This
जो कि पेशानी पे लिक्खा है वही होता है
या-रब कभी वो दिन हो कि ख़ल्वत में वो सनम
ज़ख़्म-ए-शमशीर-ए-निगह हैफ़ कि अच्छा न हुआ
हरगिज़ न मुझ से साफ़ हुआ यार या नसीब
बद-गुमानी ने मुझे क्या क्या सताया क्या कहूँ
दैर ओ हरम ब-चशम-ए-हक़ीक़त नहीं जुदा
जो परी भी रू-ब-रू हो तो परी को मैं न देखूँ
पलकें नहीं छोड़तीं कि इक दम
ख़्वाब का दरवाज़ा कुइ मसदूद कर देता है रोज़
शैख़ मग़रूर है इस्लाम पे क्या साथ अपने
जी जिस को चाहता था उसी से मिला दिया
था जो शेर-ए-रास्त सर्व-ए-बोसतान-ए-रेख़्ता