नफ़ी ओ इसबात का हंगामा रहा उस कू मैं
कोई मारा गया और कोई सर-अफ़राज़ हुआ
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अगरचे दिल तो हमें तुम से कुछ अज़ीज़ नहीं
क्या बैठना क्या उठना क्या बोलना क्या हँसना
ऐ काश कोई शम्अ के ले जा के मुझे पास
तूर पर अपने किसी दिन भी ख़ुर-ओ-ख़्वाब है याँ
ज़ि-बस ख़ून-ए-ग़लीज़ आँखों से आया
ख़ाक-ए-बदन तिरी सब पामाल होगी इक दिन
मैं ज़ुल्फ़ मुँह में ली तो कहा मार खाएगा
ख़रीदार अपना हम को जानते हो
देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर
उस के मक़्तल में मिरा ख़ून बटा दस्त-ब-दस्त
क्या मैं जाता हूँ सनम छुट तिरे दर और कहीं
ऐ 'मुसहफ़ी' तू और कहाँ शेर का दावा