'मुसहफ़ी' मैं हूँ अब और जामा-ए-उर्यानी है
था कभी चाक-ए-मलामत से गरेबाँ आबाद
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Jaun Eliya
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(286) Peoples Rate This
होंटों तक आते आते हुई वो भी सर्द आह
वहशत है मेरे दिल को तो तदबीर-ए-वस्ल कर
मुफ़्लिस के दिए की सी तिरा दाग़-ए-दिल अपना
तीन हिस्से हैं ज़मीं के ग़र्क़-ए-दरिया-ए-मुहीत
अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह
मुख-फाट मुँह पे खाएँगे तलवार हो सो हो
शब हम को जो उस की धुन रही है
हाल-ए-दिल-ए-बे-क़रार है और
बाज़ार से गुज़रे है वो बे-पर्दा कि उस को
कुछ इस क़दर नहीं सफ़र-ए-हस्ती-ओ-अदम
ने बुत है न सज्दा है ने बादा न मस्ती है
ऐ इश्क़ जहाँ है यार मेरा