'मुसहफ़ी' क्यूँके छुपे उन से मिरा दर्द-ए-निहाँ
यार तो बात के अंदाज़ से पा जाते हैं
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(273) Peoples Rate This
कहीं देखा है इस हैअत का माशूक़
दिल-ए-मायूस को पहने हुए आती हैं नज़र
मग़रिब में उस को जंग है क्या जाने किस के साथ
डाल कर ग़ुंचों की मुँदरी शाख़-ए-गुल के कान में
इतनी तो मुझ को सैर-ए-चमन की हवस न थी
पाँव में क़ैस के ज़ंजीर भली लगती है
जब नबी-साहिब में कोह-ओ-दश्त से आई बसंत
कुछ शेर-ओ-शायरी से नहीं मुझ को फ़ाएदा
आशिक़ तो मिलेंगे तुझे इंसाँ न मिलेगा
बैठे बैठे जो हम ऐ यार हँसे और रोए
ग़ज़ल ऐ 'मुसहफ़ी' ये 'मीर' की है
कुश्ता-ए-रंग-ए-हिना हूँ मैं ओजब इस का क्या