मूसा ने कोह-ए-तूर पे देखा जो कुछ वही
आता है आरिफ़ों को नज़र संग-ओ-ख़िश्त में
Wasi Shah
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Allama Iqbal
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Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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Mohsin Naqvi
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हर-चंद बहार ओ बाग़ है ये
इक हाल हो तो यारो उस का बयाँ करें हम
ने बुत है न सज्दा है ने बादा न मस्ती है
क़िस्सा-ए-मजनूँ पसंद-ए-ख़ातिर जानाना है
क्या जानिए किस किस को मैं याँ दी है अज़िय्यत
ख़्वाब था या ख़याल था क्या था
कह दो मजनूँ से करे अपनी सवारी तय्यार
धो डालिए ख़ून 'मुसहफ़ी' का
मारे हया के हम से वो कल बोलता न था
मुख-फाट मुँह पे खाएँगे तलवार हो सो हो
किबरियाई की अदा तुझ में है
ऐसी आज़ुर्दगी क्या थी हमें इस कूचे से