मिस्र को छोड़ के आई है जो हिंदुस्ताँ में
मेरे यूसुफ़ की ज़ुलेख़ा तू ख़रीदार है क्या
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मैं ने किस चश्म के अफ़्साने को आग़ाज़ किया
मैं वो दोज़ख़ हूँ कि आतिश पर मिरी
है तमन्ना-ए-सैर-ए-बाग़ किसे
कल क़ाफ़िला-ए-निक्हत-ए-गुल होगा रवाना
ऐ फ़लक तुझ को क़सम है मिरी इस को न बुझा
मजनूँ कहानी अपनी सुनावे अगर मुझे
जी से मुझे चाह है किसी की
वादों ही पे हर रोज़ मिरी जान न टालो
ने हाथ मिरा हाथ है ने जेब मिरी जेब
ओ मियाँ बाँके है कहाँ की चाल
सोते हैं हम ज़मीं पर क्या ख़ाक ज़िंदगी है
जिस कू मैं हो गुज़ार-ए-परी-तलअतान-हिन्द