मिला है आशिक़ी में रुतबा-ए-पैग़म्बरी मुझ को
मैं उस से क्यूँ दबूँ मजनूँ नहीं कुछ इब्न-ए-अम मेरा
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तू जो जाता है वहीं नित दौड़ दौड़ ऐ 'मुसहफ़ी'
बस हम हैं शब और कराहना है
राँझा यही कहता था इधर देखियो मजनूँ
वो जो आशिक़ हैं अपने हाथों से
हम दिल को लिए बर-सर-ए-बाज़ार खड़े हैं
माशूक़ा-ए-गुल नक़ाब में है
जो है सो तुम्हारा ही तरफ़-दार है साहिब
एक नाले पे है मआश अपनी
आज पलकों को जाते हैं आँसू
मर जाऊँगा मैं या वही जावेगा मुझे मार
तू मेरे सामने बैठा है आह तिस पर भी
या-रब कभी वो दिन हो कि ख़ल्वत में वो सनम