मेरे और यार के पर्दा तो नहीं कुछ लेकिन
बे-ख़ुदी बीच में दीवार हुआ चाहती है
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दिल ले गया है मेरा वो सीम-तन चुरा कर
कर के ज़ख़्मी तू मुझे सौंप गया ग़ैरों को
न समझो तुम कि मैं दीवाना वीराने में रहता हूँ
बोइए मज़रा-ए-दिल में जो इनायात के बीज
दिन को है सहरा-नवर्दी से हमें काम ऐ रफ़ीक़
मौज-ए-निकहत की सबा देख सवारी तय्यार
हर-चंद कि वो जवाँ नहीं हम
मत गोर-ए-ग़रीबाँ पर घोड़े को कुदाओ यूँ
'मुसहफ़ी' कुछ कम नसारा से नहीं
वो जो आशिक़ हैं अपने हाथों से
बुलबुलो बाग़बाँ को क्यूँ छेड़ा
अब मुझ को गले लगाओ साहिब