मारे हया के हम से वो कल बोलता न था
हम छेड़ छेड़ कर उसे लाए सुख़न के बीच
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बर्क़-ए-रुख़्सार-ए-यार फिर चमकी
गर अब्र घिरा हुआ खड़ा है
उम्र सय्याद की गुज़री इसी जासूसी में
दिल के आईने की हम लेते हैं तब है है ख़बर
बचा गर नाज़ से तो उस को फिर अंदाज़ से मारा
नफ़ी ओ इसबात का हंगामा रहा उस कू मैं
हरगिज़ रहा न काफ़िर ओ मोमिन से उस को काम
ले क़ैस ख़बर महमिल-ए-लैला तो न होवे
मैं वो गर्दन-ज़दनी हूँ कि तमाशे को मिरे
क़िस्सा-ए-मजनूँ पसंद-ए-ख़ातिर जानाना है
चाहता हूँ उस को मैं वो चाहता मुझ को नहीं
सौ बार तुम तो सामने आ कर चले गए