मैं ने क्या और निगह से तिरे रुख़ को देखा
आईना बीच में किस वास्ते दीवार है आज
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Wasi Shah
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(294) Peoples Rate This
मर्ग की देखते ही शक्ल गए भाग हवास
दर तलक आ के टुक आवाज़ सुना जाओ जी
इन दिनों शहर से जी सख़्त ब-तंग आया है
हर चंद अमर्दों में है इक राह का मज़ा
नज़रों में एक बोसा माँगा था हम ने उस से
मूसा ने कोह-ए-तूर पे देखा जो कुछ वही
दिल ख़ुश न हुआ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से निकल कर
यूँ चलते हैं लोग राह ज़ालिम
हर दम पुकारते हो किनाए से क्या मियाँ
नमली और न दूदी है न मंशारी है
ये आँखें हैं तो सर कटा कर रहेंगी
साबित तू रह जफ़ा पे मैं क़ाएम वफ़ा पे हूँ