मैं क्या कहूँ उस नग़मा-ए-मस्तूर की तस्वीर
आवाज़ से खींची है तिरी नूर की तस्वीर
Wasi Shah
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(374) Peoples Rate This
दम ग़नीमत है कि वक़्त-ए-ख़ुश-दिली मिलता नहीं
काँटा हुआ हूँ सूख के याँ तक कि अब सुनार
मैं वो दोज़ख़ हूँ कि आतिश पर मिरी
ऊधर गया तू ग़ुस्ल को हम्माम की तरफ़
मैं किस क़तार में हूँ जहाँ मुझ से सैकड़ों
हिन्दोस्ताँ में दौलत ओ हशमत जो कुछ कि थी
दिल के आईने की हम लेते हैं तब है है ख़बर
हरगिज़ न मुझ से साफ़ हुआ यार या नसीब
मैं अजब ये रस्म देखी मुझे रोज़-ए-ईद-ए-क़ुर्बां
मु-ए-जुज़ 'मीर' जो थे फ़न के उस्ताद
बिकते हैं शहर में गुल-ए-बे-ख़ार हर तरफ़
साक़ी मय-ख़ाना का गर कम-दही पर है मिज़ाज